Menu
blogid : 63 postid : 28

बारिश एक भयंकर इमेज संकट से गुज़र रही है

Hindi Blogs Jagran Junction
Hindi Blogs Jagran Junction
  • 13 Posts
  • 36 Comments

दिल्ली और मुंबई की बारिश का राष्ट्रीय चरित्र हो गया है। चार बूंदें गिरती हैं और चालीस ख़बरें बनती हैं। राष्ट्रीय मीडिया ने अब तय कर लिया है जो इन दो महानगरों में रहता है वही राष्ट्रीय है। मुझे अच्छी तरह याद है,बिहार की कोसी नदी में बाढ़़ आई। राष्ट्रीय मीडिया ने संज्ञान लेने में दस दिन लगा दिए, तब तक लाखों लोग बेघर हो चुके थे। सैंकड़ों लोग मर चुके थे। राहत का काम तक शुरू नहीं हुआ था। वो दिन गए कि मल्हार और कजरी यूपी के बागों में रची और सुनी जाती थी। अब तो कजरी और मल्हार को भी झूमने के लिए दिल्ली आना होगा। वर्ना कोई उसे कवर भी नहीं करेगा।

बारह जुलाई को जब दिल्ली में बारिश आई तो लोग घंटों जाम में फंसे रहे। पांच-पांच घंटे तक लोग सड़कों पर अटके रहे। वैसे आम दिनों में दिल्ली में कई जगहों पर दो से ढाई घंटे का जाम होता ही है। लेकिन यह जब दुगना हुआ तो धीरज जवाब दे गया। ज़रूरी भी था कि इस दैनिक त्रासदी को कवर किया जाए लेकिन जब यही बारिश जयपुर में आती, भोपाल में आती तो कवर होता। क्या जयपुर और भोपाल की बारिश के लिए कोई न्यूज़ चैनल अपना तय कार्यक्रम गिराता। मुझे नहीं लगता है।

उसी तरह दिल्ली की गर्मी और मुंबई की उमस एक महत्वपूर्ण ख़बर है। मुंबई की लोकल में ज़रा सा लोचा आ जाए, न्यूज़ चैनलों की सांसें रुक जाती हैं। पटना में कोई मालगाड़ी पलट जाए और घंटों जाम लग जाए तो कोई अपना ओबी वैन नहीं भेजेगा। दिल्ली में डीटीसी बस का किराया एक रुपया बढ़ जाए तो न्यूज़ चैनल बावले हो जाते हैं। किसी को पता नहीं कि जयपुर में किस तरह की आधुनिक बसें चल रही हैं। अहमदाबाद में बीआरटी कॉरिडोर ने किस तरह दिल्ली की तुलना में कामयाबी पाई है। दरअसल ज़रूरी है कि पाठक और दर्शक को उनके अधिकार के बारे में बताया जाए।

राष्ट्रीय मीडिया का चरित्र बन पा रहा है न बदल पा रहा है। सारे अंग्रेज़ी चैनलों ने बारिश की त्रासदी को सीमित मात्रा में दिखाया। हिन्दी चैनलों ने जितनी देर जाम उतनी देर ख़बर के पैटर्न का अनुकरण किया। दिल्ली के लोगों की ज़रूरतों को भी अनदेखा नहीं कर सकते। लेकिन हर बार हंगामा दिल्ली को लेकर ही क्यों। दिल्ली में स्थानीय न्यूज़ चैनल तो हैं ही। फिर भोपाल और जयपुर के लोग किसी राष्ट्रीय चैनल को देखने में अपना वक्त क्यों बर्बाद करें। वैसे भी कौन सी राष्ट्र की ख़बरें होती हैं।

एक नुकसान और हुआ है। महानगरों में बारिश एक समस्या का रूपक बन गई है। जिसके आने से जाम लगता है। सड़कें टूट जाती हैं। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को राउंड पर निकलना पड़ता है। इसी बारिश में दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के जवान भींगते हुए रास्ते साफ कर रहे थे। कई जगहों पर सरकारी कर्मचारी काफी कोशिश कर रहे थे। लेकिन मीडिया ने इस प्रयास को दिखाया तक नहीं। किसी ने नहीं पूछा कि और कितनी लाख कारें सड़कों पर उतरेंगी। सिर्फ एकांगी तस्वीर पेश की कि ये जो बारिश आई है वो तबाही है तबाही। दिल्ली और मुंबई में बारिश का मतलब अब आनंद नहीं रहा। ट्रैफिक जाम के आगमन का सूचक हो गया है।

देश के ज़िलों में जाइये,बारिश होते ही लोगों के चेहरे में चमक आ जाती है। अब तो बारिश में झूमते किसानों की भी तस्वीर नहीं छपती। धान की रोपनी करने वाली महिलाओं की तस्वीरें गायब हो गई हैं। सड़कों पर पानी भरने के बाद उसमें नहाते बच्चों की तस्वीरें भी नहीं छपती हैं। याद कीजिए पहले इसी तरह की मौज मस्ती की तस्वीरें छपती थीं। दिखाईं जाती थीं। अब तो न्यूज टीवी ने बारिश को आतंकवादी बना दिया। धड़ाम से ब्रेकिंग न्यूज़ का फ्लैश आता है- दिल्ली में भयंकर आंधी। मुंबई में पांच घंटे से लगातार बारिश। लोकल ट्रेन ठप्प। दहशत होने लगती है कि हाय रब्बा जाने कौन सी आफत आने वाली है। यही हाल रहा तो कुछ दिनों के बाद दिल्ली और मुंबई की नई पीढ़ियां यकीन ही नहीं कर पायेंगी कि बारिश के मौसम में हम कजरी भी गाते थे। सावन के आने के इंतज़ार में झूला भी झूलते थे। वो सवाल करेंगे कि जब हम पांच घंटे जाम में हुआ करते थे तो कजरी कौन सुना करता था।

बारिश का मतलब अब शहरी परेशानी बन कर रह गया है। नगर निगमों की नाकामी और घूसखोर इंजीनियरों की पोल खोलने का एक लाइव इवेंट। लेकिन क्या मीडिया उन इंजीनियरों का पीछा करता है? बताता है कि फलां सड़क का ठेकेदार कौन था, इंजीनियर कौन था। वो बस शोर करता है। बारिश आई और तबाही आई। दिल्ली की सड़कों में बने गड्ढे से चैनल वाले हैरान क्यों हैं। क्या बारिश ही ज़िम्मेदार है? एक इंजीनियर ने कहा कि बारिश से हम दुखी नहीं होते। रिपेयरिंग का नया बजट मिल जाता है। कमीशन खाने के लिए। इस देश की म्यूनिसिपाल्टी को कोई सुधान नहीं सकता। जब भी आप बारिश की ख़बर देंखें. टीवी बंद कीजिए और छत पर जाइये। ये मार्केंटिंग का दौर है। बारिश एक भयंकर इमेज संकट से गुज़र रही है। करतूत घूसखोरों और नकारा प्रशासन की और बदनाम बारिश हो रही है। प्लीज़ बारिश की इन मासूम फुहारों को बचाइये।
(this article was published in rajasthan patrika)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to kmmishraCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh